भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
पड़ी-पड़ी सूखण लागी
तूं कद आसी
थारी छाती री धड़कणां सूं
जीवती रहबाळी
कांचळी रा सांसा रा तार
उघड़बा लाग्या
खूंटी रै टंग्यौडै पोमचै पर
लाग्योडो मूंधो गोटो
झूठो पड़बा लाग्यो
<poem>