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}}
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<poem>
वो थोड़ा है मगर काफी ज़ियादा बन के रहता है
तमाशेबाज ख़ुद भी इक तमाशा बन के रहता है
किसी खुर्शीद के इम्कान का धड़का भी है दिल में
जभी तो चाँद मारे डर के आधा बन के रहता है
कभी मजबूरियाँ इंसाँ को ऐसे दिन दिखाती हैं
वो जिनका हो नहीं सकता हो , उनका बन के रहता है
सियासत के कबीले की अजब शतरंज है यारों
यहाँ सरदार भी अक्सर पियादा बन के रहता है
नकाबें ओढ कर मिलने से उसको ये हुआ हासिल
दयारे-ग़ैर में सबसे शनासा बन के रहता है
सुलगता हूँ तेरे दिल में सुलगने दे अभी मुझको
कि दिल का दाग़ फिर दिल का असासा बन के रहता है
वो मेरी ख़ूबियों पर तंज के परदे लगाता है
रुख़े- कुहसार पर कोई कुहासा बन के रहता है
अगर ढोने की कुव्वत हो तो उससे राबता रखिये
वो जिन काँधों पे रहता है जनाज़ा बन के रहता है
</poem>
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|रचनाकार=मयंक अवस्थी
|संग्रह=
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वो थोड़ा है मगर काफी ज़ियादा बन के रहता है
तमाशेबाज ख़ुद भी इक तमाशा बन के रहता है
किसी खुर्शीद के इम्कान का धड़का भी है दिल में
जभी तो चाँद मारे डर के आधा बन के रहता है
कभी मजबूरियाँ इंसाँ को ऐसे दिन दिखाती हैं
वो जिनका हो नहीं सकता हो , उनका बन के रहता है
सियासत के कबीले की अजब शतरंज है यारों
यहाँ सरदार भी अक्सर पियादा बन के रहता है
नकाबें ओढ कर मिलने से उसको ये हुआ हासिल
दयारे-ग़ैर में सबसे शनासा बन के रहता है
सुलगता हूँ तेरे दिल में सुलगने दे अभी मुझको
कि दिल का दाग़ फिर दिल का असासा बन के रहता है
वो मेरी ख़ूबियों पर तंज के परदे लगाता है
रुख़े- कुहसार पर कोई कुहासा बन के रहता है
अगर ढोने की कुव्वत हो तो उससे राबता रखिये
वो जिन काँधों पे रहता है जनाज़ा बन के रहता है
</poem>