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|रचनाकार=मयंक अवस्थी
|संग्रह=
}}
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<poem>
वो कौन है वो क्या है जो इस दिल में छुपा है
जैसे कि कोई साँप किसी बिल में छुपा है
क्यूँ दौड़ के आती हैं इधर मौजें मुसल्सल
क्या कम है समन्दर में ,जो साहिल में छुपा है
इक रूह बुलाती है अनासिर के क़फ़स से
पर होश किसी ख्वाब की महफिल में छुपा है
सीने को मेरे संग वो होने नहीं देता
कुछ मोम के जैसा भी इसी सिल में छुपा है
मैं कैसे दिखाऊँ कि वो लफ्ज़ों से बना है
इक तीर जो इस सीना ए बिस्मिल में छुपा है
धड़कन वो मेरी छू के परख़ता है, पलट कर
इक खौफ़ अभी तक मेरे कातिल में छुपा है
</poem>
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|संग्रह=
}}
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वो कौन है वो क्या है जो इस दिल में छुपा है
जैसे कि कोई साँप किसी बिल में छुपा है
क्यूँ दौड़ के आती हैं इधर मौजें मुसल्सल
क्या कम है समन्दर में ,जो साहिल में छुपा है
इक रूह बुलाती है अनासिर के क़फ़स से
पर होश किसी ख्वाब की महफिल में छुपा है
सीने को मेरे संग वो होने नहीं देता
कुछ मोम के जैसा भी इसी सिल में छुपा है
मैं कैसे दिखाऊँ कि वो लफ्ज़ों से बना है
इक तीर जो इस सीना ए बिस्मिल में छुपा है
धड़कन वो मेरी छू के परख़ता है, पलट कर
इक खौफ़ अभी तक मेरे कातिल में छुपा है
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