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{{KKRachna
|रचनाकार= यमुना प्रसाद चतुर्वेदी 'प्रीतम'
|संग्रह= प्रीतम काव्य रसामृत भाग-१ / यमुना प्रसाद चतुर्वेदी 'प्रीतम'
}}
[[Category: कविता]]
<poem>
चन्द्रमा ललाट जा के जटा जूट सीस सोहें
भूसन भुजंग भूरि भावना हू भारी है
भस्म अंग धारी ह्वै अनंग संग जारी जिन
त्रिपुरासुर मार जो बन्यौ त्रिपुरारी है
'प्रीतम' पियारी जा की हिमगिरि कुमारी, औ
मृग चर्म धारी, बरु नंदी की सवारी है
भूत सैन्य सारी, जिन सँभारी, भंग प्यालौ पी
ऐसे बिसधारी जू कौं वन्दना हमारी है
*
महिमा कौं जा की वेद-वेदान्त बखान करें
ऋषि मुनि ध्यान धर तत्व कों रटत हैं
जटा गंग सीस सोहें, भाल पै त्रिपुंड मोहे
सर्पन की माल धार, कष्ट कों हरत हैं
भस्म कों रमाएँ सुभ डमरू धराय हस्त
'प्रीतम' के काम संग नंदी लै फिरत हैं
उतपति स्थिति संहार के करन हार
बाबा बिश्वनाथ जी की वन्दना करत हैं
*
जय जयति जगदाधार जगपति जय महेश नमामिते
वाहन वृषभ वर सिद्धि दायक विश्वनाथ उमापते
सिर गंग भव्य भुजंग भूसन भस्म अंग सुसोभिते
सुर जपति शिव, शशि धर कपाली, भूत पति शरणागते
जय जयति गौरीनाथ जय काशीश जय कामेश्वरम
कैलाशपति, जोगीश, जय भोगीश, वपु गोपेश्वरम
जय नील लोहित गरल-गर-हर-हर विभो विश्वंभरम
रस रास रति रमणीय रंजित नवल नृत्यति नटवरम
तत्तत्त ताता ता तताता थे ई तत्ता ताण्डवम
कर बजत डमरू डिमक-डिम-डिम गूंज मृदु गुंजित भवम
बम-बम बदत वेताल भूत पिशाच भूधर भैरवम
जय जयति खेचर यक्ष किन्नर नित्य नव गुण गौरवम
जय प्रणति जन पूरण मनोरथ करत मन महि रंजने
अघ मूरि हारी धूरि जटि तुम त्रिपुर अरि-दल गंजने
जय शूल पाणि पिनाक धर कंदर्प दर्प विमोचने
'प्रीतम' परसि पद होइ पावन हरहु कष्ट त्रिलोचने
</poem>
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|रचनाकार= यमुना प्रसाद चतुर्वेदी 'प्रीतम'
|संग्रह= प्रीतम काव्य रसामृत भाग-१ / यमुना प्रसाद चतुर्वेदी 'प्रीतम'
}}
[[Category: कविता]]
<poem>
चन्द्रमा ललाट जा के जटा जूट सीस सोहें
भूसन भुजंग भूरि भावना हू भारी है
भस्म अंग धारी ह्वै अनंग संग जारी जिन
त्रिपुरासुर मार जो बन्यौ त्रिपुरारी है
'प्रीतम' पियारी जा की हिमगिरि कुमारी, औ
मृग चर्म धारी, बरु नंदी की सवारी है
भूत सैन्य सारी, जिन सँभारी, भंग प्यालौ पी
ऐसे बिसधारी जू कौं वन्दना हमारी है
*
महिमा कौं जा की वेद-वेदान्त बखान करें
ऋषि मुनि ध्यान धर तत्व कों रटत हैं
जटा गंग सीस सोहें, भाल पै त्रिपुंड मोहे
सर्पन की माल धार, कष्ट कों हरत हैं
भस्म कों रमाएँ सुभ डमरू धराय हस्त
'प्रीतम' के काम संग नंदी लै फिरत हैं
उतपति स्थिति संहार के करन हार
बाबा बिश्वनाथ जी की वन्दना करत हैं
*
जय जयति जगदाधार जगपति जय महेश नमामिते
वाहन वृषभ वर सिद्धि दायक विश्वनाथ उमापते
सिर गंग भव्य भुजंग भूसन भस्म अंग सुसोभिते
सुर जपति शिव, शशि धर कपाली, भूत पति शरणागते
जय जयति गौरीनाथ जय काशीश जय कामेश्वरम
कैलाशपति, जोगीश, जय भोगीश, वपु गोपेश्वरम
जय नील लोहित गरल-गर-हर-हर विभो विश्वंभरम
रस रास रति रमणीय रंजित नवल नृत्यति नटवरम
तत्तत्त ताता ता तताता थे ई तत्ता ताण्डवम
कर बजत डमरू डिमक-डिम-डिम गूंज मृदु गुंजित भवम
बम-बम बदत वेताल भूत पिशाच भूधर भैरवम
जय जयति खेचर यक्ष किन्नर नित्य नव गुण गौरवम
जय प्रणति जन पूरण मनोरथ करत मन महि रंजने
अघ मूरि हारी धूरि जटि तुम त्रिपुर अरि-दल गंजने
जय शूल पाणि पिनाक धर कंदर्प दर्प विमोचने
'प्रीतम' परसि पद होइ पावन हरहु कष्ट त्रिलोचने
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