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| रचनाकार=सतीश शुक्ला 'रक़ीब'
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प्यार से पौदा कोई आप लगाएं तो सही
फूल बंजर सी ज़मीं पर भी खिलाएं तो सही

पैकरे-सब्र कहाँ सबको अता होता है
ये हुनर बच्चों को हम-आप सिखाएं तो सही

हँसते - हँसते भी कभी आँख से आँसू निकलें
दे के खुशियाँ मुझे बेहद, वो रुलाएं तो सही

हो के मजबूर ही, इक़रार नहीं उसने किया
करने इनकार मेरे, सामने आएं तो सही

यूं तो चेहरे पे लिखी है तेरे दिल की हालत
हाले-दिल, अपनी ज़ुबां से भी सुनाएं तो सही

मंजिलें, आपको आसान लगेंगी कुछ और
मेरे क़दमों से क़दम आप मिलाएं तो सही

अपनी हठधर्मी से परहेज़ करेगा ये 'रक़ीब'
गैर की बाहों में रहकर वो जलाएं तो सही
<poem>
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