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मौसममेरे लोग ख़ेमा-ए-हिज्र तो दाएम है न रुख़्सत होगासब्र में मेरे शहर गर्द-ए-मलाल मेंएक ही लम्हे को हो वस्ल ग़नीमत होगाअभी कितना वक़्त है ऐ ख़ुदा इन उदासियों के ज़वाल में
मेरा दिल आख़िरी तारे की तरह है गोयाकभी मौज-ए-ख़्वाब में खो गया कभी थक के रेत पे सो गयाडूबना उस का नए दिन की बशारत होगायूँही उम्र सारी गुज़ार दी फ़क़त आरज़ू-ए-विसाल में
अब कहीं गर्दिशों के हँगामा नई तरह भँवर में हूँ किसी चाक पर मैं चढ़ा हुआ है आग़ाज़शहर भी अब के नए तौर से ग़ारत होगाकहीं मेरी ख़ाक जमी हुई किसी दश्त-ए-बर्फ़-मिसाल में
शाख़ से टूट के पत्ते ने ये दिल में सोचाकौन इस तरह भला माइलहवा-ए-हिजरत होगाग़म ये फ़ज़ा-ए-नम मुझे ख़ौफ़ है के न डाल देकोई पर्दा मेरी निगाह पर कोई रख़्ना तेरे जमाल में
दिल से दुनिया का जो रिश्ता है अजब रिश्ता है
हम जो टूटे हैं तो कब शहर सलामत होगा
 
बाद-बानों से हवा लग के गले रोती है
ये सफ़ीना भी किसी मौज की क़िस्मत होगा
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