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[[Category:दोहे]]
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छिमा बड़न को चाहिये, छोटन को उतपात।
कह रहीम हरि का घट्यौ, जो भृगु मारी लात॥1॥
छिमा बड़न को चाहियेतरुवर फल नहिं खात है, छोटन को उतपात।<br>सरवर पियहि न पान।कह कहि रहीम हरि का घट्यौपर काज हित, जो भृगु मारी लात॥1॥<br><br>संपति सँचहि सुजान॥2॥
तरुवर फल नहिं खात हैदुख में सुमिरन सब करे, सरवर पियहि सुख में करे न पान।<br>कोय।कहि रहीम पर काज हितजो सुख में सुमिरन करे, संपति सँचहि सुजान॥2॥<br><br>तो दुख काहे होय॥3॥
दुख में सुमिरन सब करेखैर, सुख में करे न कोय।<br>खून, खाँसी, खुसी, बैर, प्रीति, मदपान।जो सुख में सुमिरन करेरहिमन दाबे न दबै, तो दुख काहे होय॥3॥<br><br>जानत सकल जहान॥4॥
खैरजो रहीम ओछो बढ़ै, खून, खाँसी, खुसी, बैर, प्रीति, मदपान।<br>तौ अति ही इतराय।रहिमन दाबे न दबैप्यादे सों फरजी भयो, जानत सकल जहान॥4॥<br><br>टेढ़ो टेढ़ो जाय॥5॥
जो रहीम ओछो बढ़ैबिगरी बात बने नहीं, तौ अति ही इतराय।<br>लाख करो किन कोय।प्यादे सों फरजी भयोरहिमन बिगरे दूध को, टेढ़ो टेढ़ो जाय॥5॥<br><br>मथे न माखन होय॥6॥
बिगरी बात बने नहींआब गई आदर गया, लाख करो किन कोय।<br>नैनन गया सनेहि।रहिमन बिगरे दूध कोये तीनों तब ही गये, मथे न माखन होय॥6॥<br><br>जबहि कहा कछु देहि॥7॥
आब गई आदर गयाखीरा सिर ते काटिये, नैनन गया सनेहि।<br>मलियत नमक लगाय।ये तीनों तब ही गयेरहिमन करुये मुखन को, जबहि कहा कछु देहि॥7॥<br><br>चहियत इहै सजाय॥8॥
खीरा सिर ते काटियेचाह गई चिंता मिटी, मलियत नमक लगाय।<br>मनुआ बेपरवाह।रहिमन करुये मुखन कोजिनको कछु नहि चाहिये, चहियत इहै सजाय॥8॥<br><br>वे साहन के साह॥9॥
चाह गई चिंता मिटीजे गरीब पर हित करैं, मनुआ बेपरवाह।<br>हे रहीम बड़ लोग।जिनको कछु नहि चाहियेकहा सुदामा बापुरो, वे साहन के साह॥9॥<br><br>कृष्ण मिताई जोग॥10॥
जे गरीब पर हित करैं, हे जो रहीम बड़ लोग।<br>गति दीप की, कुल कपूत गति सोय।कहा सुदामा बापुरोबारे उजियारो लगे, कृष्ण मिताई जोग॥10॥<br><br>बढ़े अँधेरो होय॥11॥
जो रहीम गति दीप कीरहिमन देख बड़ेन को, कुल कपूत गति सोय।<br>लघु न दीजिये डारि।बारे उजियारो लगेजहाँ काम आवै सुई, बढ़े अँधेरो होय॥11॥<br><br>कहा करै तलवारि॥12॥
रहिमन देख बड़ेन कोबड़े काम ओछो करै, लघु तो न दीजिये डारि।<br>बड़ाई होय।जहाँ काम आवै सुईज्यों रहीम हनुमंत को, कहा करै तलवारि॥12॥<br><br>गिरिधर कहे न कोय॥13॥
बड़े काम ओछो करैएकहि साधै सब सधै, तो न बड़ाई होय।<br>सब साधे सब जाय।ज्यों रहीम हनुमंत कोरहिमन मूलहि सींचबो, गिरिधर कहे न कोय॥13॥<br><br>फूलहि फलहि अघाय॥15॥
माली आवत देख केरहिमन वे नर मर गये, कलियन करे पुकारि।<br>जे कछु माँगन जाहि।फूले फूले चुनि लियेउनते पहिले वे मुये, कालि हमारी बारि॥14॥<br><br>जिन मुख निकसत नाहि॥16॥
एकहि साधै सब सधैरहिमन विपदा ही भली, सब साधे सब जाय।<br>जो थोरे दिन होय।रहिमन मूलहि सींचबोहित अनहित या जगत में, फूलहि फलहि अघाय॥15॥<br><br>जानि परत सब कोय॥17॥
रहिमन वे नर मर गयेबड़ा हुआ तो क्या हुआ, जे कछु माँगन जाहि।<br>जैसे पेड़ खजूर।उनते पहिले वे मुयेपंथी को छाया नहीं, जिन मुख निकसत नाहि॥16॥<br><br>फल लागे अति दूर॥18॥
रहिमन विपदा ही भलीनिज मन की व्यथा, जो थोरे दिन होय।<br>हित अनहित या जगत मन में, जानि परत राखो गोय।सुनि इठलैहैं लोग सब कोय॥17॥<br><br>, बाटि न लैहै कोय॥19॥
बड़ा हुआ तो क्या हुआरहिमन चुप हो बैठिये, जैसे पेड़ खजूर।<br>देखि दिनन के फेर।पंथी को छाया नहींजब नीके दिन आइहैं, फल लागे अति दूर॥18॥<br><br>बनत न लगिहैं देर॥20॥
रहिमन निज मन की व्यथाबानी ऐसी बोलिये, मन में राखो गोय।<br>का आपा खोय।सुनि इठलैहैं लोग सबऔरन को सीतल करै, बाटि न लैहै कोय॥19॥<br><br>आपहु सीतल होय॥21॥
रहिमन चुप हो बैठियेमन मोती अरु दूध रस, देखि दिनन के फेर।<br>इनकी सहज सुभाय।जब नीके दिन आइहैंफट जाये तो ना मिले, बनत न लगिहैं देर॥20॥<br><br>कोटिन करो उपाय॥22॥
बानी ऐसी बोलियेदोनों रहिमन एक से, मन का आपा खोय।<br>जब लौं बोलत नाहिं।औरन को सीतल करैजान परत हैं काक पिक, आपहु सीतल होय॥21॥<br><br>ऋतु वसंत कै माहि॥23॥
मन मोती अरु दूध रसरहिमह ओछे नरन सो, इनकी सहज सुभाय।<br>फट जाये तो बैर भली ना मिलेप्रीत।काटे चाटे स्वान के, कोटिन करो उपाय॥22॥<br><br>दोउ भाँति विपरीत॥24॥
दोनों रहिमन एक सेधागा प्रेम का, जब लौं बोलत नाहिं।<br>मत तोड़ो चटकाय।जान परत हैं काक पिकटूटे से फिर ना जुड़े, ऋतु वसंत कै माहि॥23॥<br><br>जुड़े गाँठ परि जाय॥25॥
रहिमह ओछे नरन सोरहिमन पानी राखिये, बैर भली ना प्रीत।<br>बिन पानी सब सून।काटे चाटे स्वान केपानी गये न ऊबरे, दोउ भाँति विपरीत॥24॥<br><br>मोती, मानुष, चून॥26॥
रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय।<br>टूटे से फिर ना जुड़े, जुड़े गाँठ परि जाय॥25॥<br><br> रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून।<br>पानी गये न ऊबरे, मोती, मानुष, चून॥26॥<br><br> वे रहीम नर धन्य हैं, पर उपकारी अंग।<br>बाँटनवारे को लगै, ज्यौं मेंहदी को रंग॥27॥<br><br/poem>