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आज सडकों पर / दुष्यंत कुमार

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आज सड़कों पर लिखे हैं सैकड़ों नारे न देख,
पर अंधेरा अन्धेरा देख तू आकाश के तारे न देख।देख ।
एक दरिया है यहां यहाँ पर दूर तक फैला हुआ,आज अपने बाज़ुओं को देख पतवारें न देख।देख ।
अब यकीनन ठोस है धरती हकीकत हक़ीक़त की तरह,यह हक़ीक़त देख लेकिन खौफ़ ख़ौफ़ के मारे न देख।देख ।
वे सहारे भी नहीं अब जंग लड़नी है तुझे,
कट चुके जो हाथ उन हाथों में तलवारें न देख।देख ।
ये धुंधलका धुन्धलका है नज़र का तू महज़ मायूस है,रोजनों को देख दीवारों में दीवारें न देख।देख ।
राख राख़ कितनी राख राख़ है, चारों तरफ बिखरी बिख़री हुई, राख राख़ में चिनगारियां चिनगारियाँ ही देख अंगारे न देख।देख ।</poem>
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