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|रचनाकार=जानकीबल्लभ शास्त्री
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कुपथ कुपथ रथ दौड़ाता जो
पथ निर्देशक वह है,
लाज लजाती जिसकी कृति से
धृति उपदेश वह है,
मूर्त दंभ गढ़ने उठता है
शील विनय परिभाषा,
जन को जीवन की आशा,
जनता धरती पर बैठी है
नभ में मंच खड़ा है,
जो जितना है दूर मही से
उतना वही बड़ा है.