भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सोन मछरी / हरिवंशराय बच्चन

28 bytes added, 16:20, 12 अप्रैल 2013
}}
{{KKCatKavita}}
{{KKVID|v=tTFE-zSaE7U}}
<poem>
 
स्त्री
उनका सुख लेकर वह भागा,
बस रह गई नयनों में आँसू की लरी.
रानी आँसू की लरी;रानी आँसू की लरी.
रानी मत माँगो;नदिया की सोन मछरी.
देखी होती बात निराली,
छूकर सोन मछरी हुई सोने की परी.
रानी,सोने की परी;रानी,सोने की परी
छूकर सोन मछरी हुई सोने की परी.
हुए अपने पराये,
हाय!मछरी जो माँगी कैसी बुरी थी घरी!
कैसी बुरी थी घरी,कैसी बुरी थी घरी.
सोन मछरी जो माँगी कैसी बुरी थी घरी.
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader, प्रबंधक
35,129
edits