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गुड़िया-4 / नीरज दइया

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|संग्रह=उचटी हुई नींद / नीरज दइया
}}
{{KKCatKavita‎}}<poem>मेरा चूमनातुम्हारे भीतर और तुम्हाराभीतरखुद उतरने की चाह, पाने को यूँमन की थाहमेरे भीतरहवाले कर देना ।अब भी जिंदा है।
मेरा गले लगानाकब तक रहोगीऔर तुम्हाराकिनारों से लिपटी तुमखुद को बेसहाराएक दिन तुम्हेंछोड़ देना ।कर किनारे प्यारा बीच भंवर में तुमक्यों बन जाती होआना ही होगामेरी गुड़िया !ढूंढऩे अपनी जिंदगी।
</poem>
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