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|रचनाकार=गजेन्द्र ठाकुर
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मुदा मनुक्ख ताकि अछि लेने
एहि अनन्तक परिधि
ई आकाश छद्मक तँ नहि अछि विस्तार,
तावत एकर असीमतापर तँ करहि पड़त विश्वास!
समय-काल-देशक गणनाक।