भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जीवन / अनिल जनविजय

287 bytes added, 19:09, 20 अक्टूबर 2007
|संग्रह=माँ, बापू कब आएंगे
}}
 
बेचैन होते हैं
 
फड़फड़ाते हैं
 
पेड़ों से टूट कर गिर जाते हैं
 
 
पुराने पत्ते
 
नयों के लिए
 
यह दुनिया छोड़ जाते हैं
Anonymous user