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|रचनाकार=रामधारी सिंह "दिनकर"
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परंपरा को अंधी लाठी से मत पीटो |उसमे उसमें बहुत कुछ है,जो जीवित है,जीवन दायक है,जैसे भी हो,ध्वसं ध्वंस से बचा रखने लयक लायक है |
पानी का छिछला होकर
समतल मे दोडना,में दौड़नायह क्रंनति क्रांति का नाम है |लेकिन घाट बँआनधकरबांध करपानि पानी को गहरा बनानायह पुरमपरा परम्परा का नाम है|
मगर जो डालें
आज भी हरि है ,हरी हैंउनपर उन पर तो तरस खाओ|मेरि मेरी एक बात तुमा तुम मान लो |
और ये बात याद रहे