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Kavita Kosh से
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आता है याद मुझको गुज़रा हुआ ज़माना
वो बाग़ की बहारें , वो सब क का चह-चहाना
आज़ादियाँ कहाँ वो , अब अपने घोसले की
अपनी ख़ुशी से आना अपनी ख़ुशी से जाना
लगती हो चोट दिल पर, आता है याद जिस दम
शबनम के आँसूओं आँसुओं पर कलियों का मुस्कुराना
वो प्यारी-प्यारी सूरत, वो कामिनी-सी मूरत
आबाद जिस के दम से था मेरा आशियाना
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