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Kavita Kosh से
रहे समक्ष हिम शिखर, तुम्हारा पर्ण उठे निखर <br>
भले ही जाय तम तन बिखर,<br>
रुको नहीं, झुको नहीं, बढे चलो बढे चलो ।
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