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|रचनाकार=लावण्या शाह
}}
{{KKCatKavita}}<poem>अन्तर मनसे उपजी मधुर रागिनीयों सा,<br>होता है दम्पतियों का सुभग संसार ,<br>परस्पर, प्रीत, सदा सत्कार, हो साकार,<br>कुल वैभव से सिंचित, सुसंस्कार !<br>तब होता नहीँ, दूषित जीवन का,<br>कोई भी, लघु - गुरु, व्यवहार...<br><br>
नहीं उठती दारुण व्यथा हृदय में,<br>बँधते हैं प्राणो से तब प्राण !<br>कौन देता नाम शिशु को ?<br>कौन भरता सौरभ भंडार ?<br>कौन सीखलाता रीत जगत की ?<br>कौन पढाता दुर्गम ये पाठ?<br><br>
माता और पिता दोनों हैँ,<br>एक यान के दो आधार,<br>जिससे चलता रहता है,<br>जीवन का ये कारोबार !<br>सभी व्यवस्था पूर्ण रही तो,<br>स्वर्ग ना होगा क्या सँसार ?<br><br>
ये धरती है इंसानों की,<br>नहीँ दिव्य, सारे उपचार!<br>एक दिया,सौ दीप जलाये,<br>प्रण लो, करो,आज,पुकार!<br>बदलेंगें हम, बदलेगा जग,<br>नहीं रहेंगे, हम लाचार!<br>कोरी बातों से नहीं सजेगा,<br>ये अपने सपनों का संसार।<br><br/poem>*************************************************
आवागमन ( written : 4 th Dec. 1974 )
२०:१९, १ दिसम्बर २००७ (UTC)२०:१९, १ दिसम्बर २००७ (UTC)२०:१९, १ दिसम्बर २००७ (UTC)२०:१९, १ दिसम्बर २००७ (UTC)२०:१९, १ दिसम्बर २००७ (UTC)२०:१९, १ दिसम्बर २००७ (UTC)२०:१९, १ दिसम्बर २००७ (UTC)२०:१९, १ दिसम्बर २००७ (UTC)२०:१९, १ दिसम्बर २००७ (UTC)[[सदस्य:208.102.209.199|208.102.209.199]] २०:१९, १ दिसम्बर २००७ (UTC)