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|रचनाकार=रति सक्सेना
}}
{{KKCatKavita}}<poem>समुद्र के सपनों में मछलियाँ नहीं<br>सीप घौंघे, जलीय जीव जन्तु नहीं<br>किश्तियाँ और जहाज नहीं<br>जहाजों की मस्तूल नहीं<br>लहरों के उठना ,सिर पटकना नही<br>नदियाँ नहीं , उनकी मस्तियाँ नहीं<br>समुद्र सपने देखता है<br>जमीन का, उस पर चढे पहाडों का<br>उन सबका जिन्हें नदियाँ छोड<br>चलीं आईं थीं उस के पास<br>
समुद्र के सपने में पानी नहीं होता
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