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|संग्रह=एक पगली लड़की के बिन / कुमार विश्वास
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{{KKCatKavita}}{{KKVID|v=5ChzrnWyLkI-YVJSXqx2sI}}<poem>मावस की काली रातों में दिल का दरवाजा खुलता है,<br>जब दर्द की काली रातों में गम आंसू के संग घुलता है,<br>जब पिछवाड़े के कमरे में हम निपट अकेले होते हैं,<br>जब घड़ियाँ टिक-टिक चलती हैं,सब सोते हैं, हम रोते हैं,<br>जब बार-बार दोहराने से सारी यादें चुक जाती हैं,<br>जब ऊँच-नीच समझाने में माथे की नस दुःख जाती है,<br>तब एक पगली लड़की के बिन जीना गद्दारी लगता है,<br>और उस पगली लड़की के बिन मरना भी भारी लगता है।<br><br>
जब पोथे खाली होते है, जब हर्फ़ सवाली होते हैं,
जब गज़लें रास नही आती, अफ़साने गाली होते हैं,
जब बासी फीकी धूप समेटे दिन जल्दी ढल जता है,
जब सूरज का लश्कर छत से गलियों में देर से जाता है,
जब जल्दी घर जाने की इच्छा मन ही मन घुट जाती है,
जब कालेज से घर लाने वाली पहली बस छुट जाती है,
जब बेमन से खाना खाने पर माँ गुस्सा हो जाती है,
जब लाख मन करने पर भी पारो पढ़ने आ जाती है,
जब अपना हर मनचाहा काम कोई लाचारी लगता है,
तब एक पगली लड़की के बिन जीना गद्दारी लगता है,
और उस पगली लड़की के बिन मरना भी भारी लगता है।
जब पोथे खाली होते कमरे में सन्नाटे की आवाज़ सुनाई देती है, जब हर्फ़ सवाली होते हैंदर्पण में आंखों के नीचे झाई दिखाई देती है,<br>जब गज़लें रास नही आती, अफ़साने गाली होते बड़की भाभी कहती हैं,<br>कुछ सेहत का भी ध्यान करो,जब बासी फीकी धूप समेटे क्या लिखते हो दिन जल्दी ढल जता हैभर,<br>जब सूरज कुछ सपनों का लश्कर छत से गलियों में देर से जाता हैभी सम्मान करो,<br>जब जल्दी घर जाने की इच्छा मन ही मन घुट जाती हैबाबा वाली बैठक में कुछ रिश्ते वाले आते हैं,<br>जब कालेज से घर लाने वाली पहली बस छुट जाती बाबा हमें बुलाते है,<br>हम जाते में घबराते हैं,जब बेमन से खाना खाने पर माँ गुस्सा हो जाती साड़ी पहने एक लड़की का फोटो लाया जाता है,<br>जब लाख मन करने पर भी पारो पढ़ने आ जाती भाभी हमें मनाती हैं, फोटो दिखलाया जाता है,<br>जब अपना हर मनचाहा काम कोई लाचारी सारे घर का समझाना हमको फनकारी लगता है,<br>तब एक पगली लड़की के बिन जीना गद्दारी लगता है,<br>और उस पगली लड़की के बिन मरना भी भारी लगता है।<br>