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{{KKRachna
|रचनाकार=गुलज़ार
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किताबें झाँकती है बंद अलमारी के शीशों से
क़िताबें माँगने, गिरने, उठाने के बहाने जो रिश्ते बनते थे
अब उनका क्या होगा...!!
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