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{{KKRachna
|रचनाकार=साहिर लुधियानवी
|संग्रह=
}}

संसार की हर शैय का इतना ही फ़साना है

इक धुन्ध से आना है, इक धुन्ध में जाना है


:::::यह राह कहाँ से है यह राह कहाँ तक है

:::::यह राज़ कोई राही समझा है, न जाना है


एक पल की पलक पर है, ठहरी हुई यह दुनिया

एक पलक झपकने तक हर खेल सुहाना है


:::::क्या जाने कोई किस पर, किस मोड़ पर क्या बीते

:::::इस राह में ऎ राही हर मोड़ बहाना है


हम लोग खिलौना हैं एक ऎसे खिलाड़ी का

जिस को अभी सदियों तक यह खेल रचाना है
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