भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सुन्दर उदिता / सविता सिंह

1,144 bytes added, 19:22, 4 नवम्बर 2007
New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सविता सिंह |संग्रह=नींद थी और रात थी }} गहरी काली रात सो...
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=सविता सिंह
|संग्रह=नींद थी और रात थी
}}

गहरी काली रात सोई है उदिता जैसी

खोले अपने कपड़े अपने बाल बिस्तर में अकेली

मन में है न उसके कोई उलझन

कोई विषाद या फिर चाह

सो चुकी है रात पूरी एक नींद

खोल चुकी है आँख

बाहर सुन्दर लाल गोला सूरज का निकल चुका है

बाहों को हवा में ऊपर उठा लेती हुई सुखद एक अंगड़ाई

बदन को करती हुई सीधा

अपने कपड़े पहन रही है उदिता


सामने नीला आकाश बना है देखो

कितना बड़ा दर्पण देखने के लिए उसके

अपना यह सौन्दर्य
Anonymous user