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|संग्रह=बोली तूं सुरतां / प्रमोद कुमार शर्मा
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हे सुरतां !
म्हारा अकथ निबळा बोल
कैवूं म्है किण सूं
नीं सुझै कान
मायड़ ! तूं तो आडौ खोल !
काम अरथ रौ मुळ है
अरथ मूळ है मोख !
मोख मूळ है धरम रौ
धरम मूळ है तूं !
बंध्यौड़ी कामधेनु
महलां री पिरौळ
लाल चून्दड़ी वाळी म्हारै सुपनां री छियां
कथूं म्है किण बिध
राज औ गै‘रौ !हे सुरतां !म्हारा अकथ निबळा बोल !
</poem>
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