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सुपारी / हरीश बी० शर्मा

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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=हरीश बी० शर्मा|संग्रह=}}{{KKCatRajasthaniRachna}}{{KKCatKavita‎}}<poemPoem>सरोते रे बीच फंसी सुपारी
बोले कटक
अर दो फाड़ हुय जावै
अर सुभाव है-स्वाद देवणों
तो ओळभो अर शबासी कैने
***
</poem>
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