भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
|संग्रह=
}}
टाबर, मिनख, बूढा
एक सूं लेय’र अस्सी तांई
अकल माथै भाठा क्यूं....
एक डोकरो कैवै-
‘रोवणो तो आज फैसन है सा....’</poem>