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<poem>
तुझ से मैं मुझ से आशना तुम हो
मैं हूँ ख़ुशबू मगर हवा तुम हो

मैं लिखावट तेरी हथेली की
मेरी तक़दीर कालिखा तुम हो

तुम अगर सच हो, मैं भी झूठ नहीं
अक्स मैं, मेरा आइना तुम हो

बेख़ुदी ने मेरा भरम तोड़ा
मैं समझता रहा ख़ुदा तुम हो

मैं हूँ मुजरिम, मेरे हो मुंसिफ़ तुम
मैं ख़ता हूँ, मेरी सज़ा तुम हो

सीप की आस बन के चाहूँ तुम्हें
लाये जो मोती वह घटा तुम हो

अपनी मजबूरियों का रंज नहीं
बेवफ़ा मैं हूँ, बावफ़ा तुम हो

रोग बनकर पड़ा हुआ है 'कंवल'
तुम दवा हो, मेरी दुआ तुम हो
</poem>
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