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फि‍र / उत्‍तमराव क्षीरसागर

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<poem>थकान के बि‍स्‍तर पर बेसुध नींद
मूर्छा की हद तक
कभी-कभी मौत की तरह
बेहद शांत और थि‍र
फि‍र
एक चुटकी सुबह की
और मुसकाती धूप
पुचकारती नई लंबी यात्रा के लिए
बहलाती-सी कि‍सी बच्‍चे की तरह
समझा चुकी होती पूरी तरह एक नया काम
</poem>