भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
<poem>
जिन्दगी भर वे पगड़ी के साथ रहे
किसी मुसीबत में पड़ते तो दूसरो दूसरों के
पाँव पर रख देते थे पगड़ी
उम्र भर खेलते रहे पगड़ी का खेल
जाते समय पिता ने सौंपी थी यह पगड़ी
और कहा था -- यह जादुई पगड़ी तुम्हे तुम्हें हर
मुसीबत से बचा सकती है
पगड़ी कभी सिर पर कभी किसी के
पाँव पर पड़ी रहती थी
वह सुविधानुसार बदलती रहती थी जगह
भवसागर पार करने की कला
</poem>