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'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=उत्तमराव क्षीरसागर |अनुवादक= |सं...' के साथ नया पन्ना बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=उत्तमराव क्षीरसागर
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>नीत्शे !
तुम्हारा ईश्वर मरा नहीं होगा
नहीं मरा होगा
हालाँकि
तुम्हारी घोषणा सही थी ।
तुम्हारा ईश्वर बना होगा अनास्था से ।
विजेता कहने भर के लिए
या, किसी अज्ञात भय से
सुमर लेता है, लेकिन
परास्त लोगो का ईश्वर
बडा शक्तिशाली होता है ।
पराजितों की आशा
- विश्वास
आसक्ति और, या आस्था
सशक्त होती है
'गहरे ताल-सी गहराई'
नीत्शे !
तुमने अपनी बात सतर्क-सटीक की होगी
तर्क और टीका
अवांतर फैली
क्षितिज के विस्तार-सी
विस्तीर्ण
- 2000 ई0</poem>
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<poem>नीत्शे !
तुम्हारा ईश्वर मरा नहीं होगा
नहीं मरा होगा
हालाँकि
तुम्हारी घोषणा सही थी ।
तुम्हारा ईश्वर बना होगा अनास्था से ।
विजेता कहने भर के लिए
या, किसी अज्ञात भय से
सुमर लेता है, लेकिन
परास्त लोगो का ईश्वर
बडा शक्तिशाली होता है ।
पराजितों की आशा
- विश्वास
आसक्ति और, या आस्था
सशक्त होती है
'गहरे ताल-सी गहराई'
नीत्शे !
तुमने अपनी बात सतर्क-सटीक की होगी
तर्क और टीका
अवांतर फैली
क्षितिज के विस्तार-सी
विस्तीर्ण
- 2000 ई0</poem>