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प्यार के पुतले / हरिऔध

13 bytes removed, 07:45, 18 मार्च 2014
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बात मीठी लुभावनी सुन -सुन। 
जो नहीं हो मिठाइयाँ देते।
 
तो खिले फूल से दुलारे का।
 चाह से गाल चूम तो लेते।लेते।।
हाथ उन पर भला उठायें क्यों।
 
जो कि हैं ठीक फूल ही जैसे।
पा सके तन गला-गला जिन को।
गाल उनका भला मलें कैसे॥
पा सके तन गला गला जिन को। गाल उनका भला मलें वै+से। है लुभा लेती ललक पहलू लिये।लिए।
हैं कमाल भरी अमोल पहेलियाँ।
 लालसावाले लालसा वाले निराले लाल के। हाथ की ये लाल -लाल हथेलियाँ।हथेलियाँ।।
तैरते हैं उमंग लहरों में।
 चाव से लाड़ साथ लड़ -लड़ के। 
लाभ हैं ले रहे लड़कपन का।
 हाथ औ पाँव फेंकते लड़के।लड़के।।
प्यार कर प्यार के खिलौने को।
 
कौन दिल में पुलक नहीं छाई।
 
देख भावों भरी भली सूरत।
 कौन छाती भला न भर आई।आई॥
चूम लें और ले बलायें लें।
 
लाभ है लाड़ के ऍंगेजे में।
 
मनचले नौनिहाल हैं जितने।
 हँस उन्हें डाल लें कलेजे में।में।।
ले सके जो, उसे न क्यों लेवे।
 लाड़िला लाड़ला वह तमाम घर का है। 
ठीक पर का अगर रहा पर का।
 दूसरा कौन पीठ पर का है।है।।
क्यों ललकती रहें न माँ-आँखें।
 दल दिल उसे लाल फूल का कह -कह। 
लाल है, है गुलाल की पुटली।
 लाल की लाल -लाल एड़ी यह।यह॥
प्यार से हैं प्यार की बातें भरी।
 
माँ कलेजे के कमल जैसा खिले।
 पाँव -पाँव ठुमुक -ठुमुक घर में चले। 
लाल को हैं पाँव चन्दन के मिले।
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