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Kavita Kosh से
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न मंज़िल का, न मकसद का , न रस्ते का पता है
हमेशा दिल किसी के पीछे पीछे ही चलता रहा है
थे बाबस्ता उसी से ख्वाब, ख्वाहिश, चैन सब कुछ