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कवि / भवानीप्रसाद मिश्र

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बीज ऐसा बो कि जिसकी बेल बन बढ़ जाये.
फल लगें ऐसे कि सुख रस, सार और समर्थ
प्राण- संचारी कि शोभा-भर न जिनका अर्थ.
टेढ़ मत पैदा करे गति तीर की अपना,
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