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अफ़्सोस है / अकबर इलाहाबादी

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|रचनाकार=डा मीरा रामनिवासअकबर इलाहाबादी
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अफ़्सोस है गुल्शन ख़िज़ाँ लूट रही है
शाख़े-गुले-तर सूख के अब टूट रही है
== '''''सुखद अहसास''''' == गुमइस क़ौम से वह आदते-सुम बैठे बच्चे को हंसाने का  रुठे हुए बच्चे को मनाने का  एक सुखद एहसास  बच्चे को हवा में उछाल कर खिलाने का  डर कर रोने पर अंक में भर लेने का  एक सुखद एहसास  कभी अचानक से बच्चे को पसंद की वस्तु लाकर देना  वस्तु पाकर बच्चे के चेहरे पर आइ खुशी को देखने का  एक सुखद एहसास  कभी छोटे से अंतराल के बाद घर लौटने पर  बच्चे का भागकर अपने से लिपट जाने का  एक सुखद एहसास  बच्चों के साथ खेलने का  बच्चों की कहानी सुनाने का  एक सुखद एहसास !   देरीनये-ताअतबिलकुल नहीं छूटी है मगर छूट रही है</poem>
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