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|संग्रह=चराग़े-दिल / देवी नांगरानी
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सर पटकते हैं आशियानों में|
शिद्दतें चाहिये तरानों में|
नज़रे बाज़ार हो गए रिश्ते<br>
घर बदलने लगे दुकानों में|
लोग जीते हैं किन गुमानों में|
नक्श छोड़े हैं आसमानों में|
जोश बाक़ी नहीं जवानों में|
एक घर बंट गया घरानों में|
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