भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
अरे! आपरी कौम नैं संभाळो
अरे! आपरी भोम नैं संभाळो
हाथां मांय लेल्यो, ठ्ठद्भद्मड्डह्म्द्ध दरांती अर फावड़ा
ताकि बेगा-सा आपां, खेतां नै नावड़ां
बठै बीज परेसान है
मौज-मेळा करता
पाणी-पतासा खांवता
या द्गद्मङ्ख4 मॉल मांय जांवता
बै सगळा-
आपरै ई घर में नकाबपोस होग्या