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<Poem>च्यारूंमेर
ऊकळतौ अणथाग ऊन्हाळौ
सूळां-सी खुबती
आकरी किरणां
चौफेर रा लीरा-लीरा करती
लू ---
अमूजै नै अधगावळौ करता
बतूळां रा गोट
सैर
गांव
अर ढांण्यां बिच्चै
अेकल उडती
धूड़
- फेर काळ पड़ग्यौ इण मुलक में
खुलग्यौ फेरूं
फैमीनां रौ काम -
जमीं नै आदमी अणखावणौ लागै !

चौगिड़दै पसर्या
अलेखूं धोरां री घमघेर में
गम्योड़ा गांव
म्हारै चेतै मांय चक्कारा मारै,
डबडबती आंख्यां में
बळतै पांणी रा तिरवाळा,
गूंगै ताडै में तड़भड़ती
आंधै तावड़ै री तीठ
नागै-चामड़ै हाडां में
बुझती आखरी सांसां
बेर्यां -
पांणी रौ परियाणौ सोधै,
आ बळती -
आ लाय,
- फेरूं काळ पड़ग्यौ इण मुलक में
खुलग्यौ फेरूं
फैमीनां रौ काम -
तिरस अर पांणी रै बिच्चै आंतरौ बधग्यौ !

हरमेस
तिड़की में धोरां माथै
धूजण लागै रेत
दीठ में पसरै
रेगिस्तान ---
ऊजड़ में
डाडै डांगर - जीव,
थ्जनावर मरता माटी खाय,
मिनख रै हीयै फूटै
- हेज ---
निस्कारां बिच्चै
इत्ती लांबी जेज ?
अै सिडता घाव -
औ मांदौ लखाव,
- फेरूं काळ पड़ग्यौ इण मुलक में
खुलग्यौ फेरूं
फैमीनां रौ काम -
जीवण अर मिरतू रौ धोरी अधगैलौ व्हेग्यौ !

कदे-कदास
आधी रात रै सरणाटै
काळी जाळां रै जंगळ में
कोई घघूड़ौ घूंकै
चररावै कोचरी अळगी -
उणींदै आदम रौ
अणचेत हीयौ
हरख में हिबोळा खावै,
छाती अर लिलाड़ माथै
परसेवौ पळकै -
बैम री बिरखा आवै,
अर इण भरम सूं
अेक्कानी
उठीनै वौ
तन तड़फा तोड़ै तालर में -
कोई नसौ-ऊतर्यौ
बूढौ अम्मलदार
आाधी रात में उबासी खावै !
अैड़ी अजूबी
अणचींती हरकतां सूं
रेळ-पेळ औ मुलक
आखै बरस पड़्यौ पसवाड़ा फेरै
नींद नीं आवै।
औ अंतहीण अकळौ -
आ दोगाचींती,
- फेरूं काळ पड़ग्यौ इण मुलक में
खुलग्यौ फेरूं
फैमीनां रौ काम -
मिनख अर मुलक रै मांय थोथ बापरगी !
तिरस अर पांणी रै बिच्चै आंतरौ बधग्यौ !!

जनवरी, ’73
</Poem>
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