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{{KKRachna
|रचनाकार=सुदर्शन फ़ाकिर
}} [[Category:गज़ल]]{{KKCatGhazal}}<poem>ये शीशे ये सपने ये रिश्ते ये धागेकिसे क्या ख़बर है कहाँ टूट जायेंमुहब्बत के दरिया में तिनके वफ़ा केन जाने ये किस मोड़ पर डूब जायें
ये शीशे ये सपने ये रिश्ते ये धागे<br>अजब दिल की बस्ती अजब दिल की वादी किसे क्या ख़बर है कहाँ टूट जायें<br>हर एक मोड़ मौसम नई ख़्वाहिशों कामुहब्बत लगाये हैं हम ने भी सपनों के दरिया में तिनके वफ़ा के<br>पौधेन जाने ये किस मोड़ पर डूब जायें<br><br>मगर क्या भरोसा यहाँ बारिशों का
अजब दिल मुरादों की बस्ती अजब दिल की वादी <br>मंज़िल के सपनों में खोयेहर एक मोड़ मौसम नई ख़्वाहिशों का<br>लगाये हैं मुहब्बत की राहों पे हम ने भी सपनों चल पड़े थेज़रा दूर चल के पौधे<br>जब आँखें खुली तोमगर क्या भरोसा यहाँ बारिशों का<br><br>कड़ी धूप में हम अकेले खड़े थे
मुरादों की मंज़िल के सपनों में खोये<br>मुहब्बत की राहों पे हम चल पड़े थे<br>ज़रा दूर चल के जब आँखें खुली तो<br>कड़ी धूप में हम अकेले खड़े थे<br><br> जिन्हें दिल से चाहा जिन्हें दिल से पूजा<br>नज़र आ रहे हैं वही अजनबी से<br>रवायत है शायद ये सदियों पुरानी<br>शिकायत नहीं है कोई ज़िन्दगी से<br><br/poem>
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