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|रचनाकार=संतोष मायामोहन
|संग्रह=मंडाण / नीरज दइया
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<poem>खाली है थांरा
अदीतवार सूं लेय’र
सनिवार तांई रा सातूं खानां
कै वार रै एक-एक खानै
मांडो थे कूं कूं पगलिया
अथम अनै-
निसर जावो
थांरी आगै री जातरा माथै।
म्हारो धन,
थारै उदय-अस्त रो
सिमरण।</poem>
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