भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नंददास |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatPad}} <poem>...' के साथ नया पन्ना बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=नंददास
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatPad}}
<poem>
जुरि चली हें बधावन नंद महर घर सुंदर ब्रज की बाला।
कंचन थार हार चंचल छबि कही न परत तिहिं काला॥१॥

डरडहे मुख कुमकुम रंग रंजित , राजत रस के एना।
कंचन पर खेलत मानो खंजन अंजन युत बन नैना॥२॥

दमकत कंठ पदक मणि कुंडल, नवल प्रेम रंग बोरी।
आतुर गति मानो चंद उदय भयो, धावत तृषित चकोरी॥३॥

खसि खसि परत सुमन सीसन ते, उपमा कहां बखानो।
चरन चलन पर रिझि चिकुर वर बरखत फूलन मानो॥४॥

गावत गीत पुनीत करत जग, जसुमति मंदिर आई।
बदन विलोकि बलैया ले लें, देत असीस सुहाई॥५॥

मंगल कलश निकट दीपावली, ठांय ठांय देखि मन भूल्यो।
मानो आगम नंद सुवन को, सुवन फूल ब्रज फूल्यो॥६॥

ता पाछे गन गोप ओप सों, आये अतिसे सोहें।
परमानंद कंद रस भीने, निकर पुरंदर कोहे॥६॥

आनंद घर ज्यों गाजत राजत, बाजत दुंदुभी भेरी।
राग रागिनी गावत हरखत, वरखत सुख की ढेरी॥७॥

परमधाम जग धाम श्याम अभिराम श्री गोकुल आये।
मिटि गये द्वंद नंददास के भये मनोरथ भाये॥८॥
</poem>
Delete, Mover, Reupload, Uploader
1,983
edits