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बगत / देवकरण जोशी

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|रचनाकार=देवकरण जोशी
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<Poem>बगत रो रथ
नीं रुकै नीं थमै
चालतो रैवै
रुकै बगत री बातां
सालूं-साल
सदियां लग
बण जावै
इतियास रै पानां मांय
एक बानगी
जिकी बांची जावै
आवणवाळी
पीढियां रै बिचाळै
चावै आछी
चावै माड़ी
सुणनी तो पड़ै ई।</poem>
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