भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सरवर आलम राज़ 'सरवर' |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पन्ना बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=सरवर आलम राज़ 'सरवर'
|अनुवादक=
|संग्रह=एक पर्दा जो उठा / सरवर आलम राज़ 'सरवर'
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>जब जब वो सर-ए-तूर-ए-तमन्ना नज़र आया
मैं कैसे कहूँ वो मुझे क्या क्या नज़र आया!
हस्ती के दर-ओ-बस्त का मारा नज़र आया
हर शख़्स तमाशा ही तमाशा नज़र आया!
देखा जो ज़माने को कभी अच्छी नज़र से
जो भी नज़र आया हमें अच्छा नज़र आया!
काबे में जो देखा वही बुतख़ाने में पाया
जैसा वो मिरे दिल में था वैसा नज़र आया
औरों पे बढ़े संग-ए-मलामत जो लिए हम
हर चेहरे में क्यों अपना ही चेहरा नज़र आया?
क्या ये भी मुहब्बत के तक़ाज़ों में है शामिल?
दर्या में नज़र आया तो सहरा नज़र आया!
ढूँढा ही नहीं हमने तुम्हारा कोई हमसर
हाँ!तुम कहो, तुम को कोई हम सा नज़र आया?
यूँ और बहुत ऐब हैं ‘सरवर’ में वलेकिन
कमबख़्त मुहब्बत में तो यकता नज़र आया!
</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=सरवर आलम राज़ 'सरवर'
|अनुवादक=
|संग्रह=एक पर्दा जो उठा / सरवर आलम राज़ 'सरवर'
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>जब जब वो सर-ए-तूर-ए-तमन्ना नज़र आया
मैं कैसे कहूँ वो मुझे क्या क्या नज़र आया!
हस्ती के दर-ओ-बस्त का मारा नज़र आया
हर शख़्स तमाशा ही तमाशा नज़र आया!
देखा जो ज़माने को कभी अच्छी नज़र से
जो भी नज़र आया हमें अच्छा नज़र आया!
काबे में जो देखा वही बुतख़ाने में पाया
जैसा वो मिरे दिल में था वैसा नज़र आया
औरों पे बढ़े संग-ए-मलामत जो लिए हम
हर चेहरे में क्यों अपना ही चेहरा नज़र आया?
क्या ये भी मुहब्बत के तक़ाज़ों में है शामिल?
दर्या में नज़र आया तो सहरा नज़र आया!
ढूँढा ही नहीं हमने तुम्हारा कोई हमसर
हाँ!तुम कहो, तुम को कोई हम सा नज़र आया?
यूँ और बहुत ऐब हैं ‘सरवर’ में वलेकिन
कमबख़्त मुहब्बत में तो यकता नज़र आया!
</poem>