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|संग्रह=कारो / प्रमोद कुमार शर्मा
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चिड़ी, अे चिड़ी!
सबद मांय कीड़ी
बणÓर बण'र चालूं हूं राह-राह
तूं निगैदास्ती राखी
कीं सबद मुंडेरा ऊपर सूं
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