भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
बाक़ी जो हैं बेकार हैं, मार दिए जाने योग्य हैं, या भुला दिए जाने लायक?
आखिरी सच यह है कि एक मरते हुए मुर्ग़े के लिए इन सवालों का कोई मतलब नहीं
हम एक प्रतीक की तरह उसमें चाहे गू़ढ़ार्थ गूढ़ार्थ ढूढ़ लें
यह हकीक़त बदलती नहीं
कि मुर्ग़ा बस मुर्ग़ा है, और इंसान को उसके उपयोग की अनंत विधियां मालूम हैं