भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
कुछ रहीने मय<ref>शराब की अहसानमंद</ref> नहीं मस्ते ख़राम,
सब नशा है सैण्डिल की हील में ।
यार किहकर मेरी सिगरेट खेंच ली
किस क़दर बिगड़े हैं बच्चे ढील में ।
यक-ब-यक लहरों में दम-सी आ गई,