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रिश्ते (हाइकु) / अशोक कुमार शुक्ला
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13:51, 8 दिसम्बर 2014
नासूर बन कर
रिसते रिश्ते
(7)
दरवाजे की
दरारो से झांकते
भोले से रिश्ते
(8)
पहली बर्षा
मिट्टी की खुशबू
महके रिश्ते
(9)
पागल सांड
बिदकता फिरता
बिगडे रिश्ते
(10)
बट्टे खाते में
पडी रकम जैसे
निस्तेज रिश्ते
</poem>
Dr. ashok shukla
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