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सदस्य वार्ता:Sumitkumar kataria

6,878 bytes added, 14:18, 28 अप्रैल 2008
==वर्तनी==
प्रिय सुमित जी,
कुछ ऎसा हुआ कि मैंने दो बार वर्तनी के सवाल पर आपको अपना उत्तर लिखा, लेकिन दोनों ही बार उसे Save नहीं कर पाया और मैं इतना ज़्यादा व्यस्त रहता हूँ कि इस बेकार की बहस में आपके साथ समय नहीं ख़राब करना चाहता था। कौन कहता है कि लोग ञ उच्चारना ही नहीं जानते। मैं तो इसे बड़ी ही सहजता से उच्चार लेता हूँ। दरअसल
हिन्दी को सरल बनाने के प्रयास हो रहे हैं जो एक सही नीति है। हिन्दी सरल होगी तो वह आसानी से पहले राष्ट्रीय भाषा और फिर विश्व भाषा बन जाएगी। इसीलिए नई नीति के अनुसार भारत सरकार भी इस बात पर ज़ोर दे रही है कि सभी अनुनासिकों की जगह अनुस्वार लगना चाहिए। इस नीति से अंशत: असहमत होते हुए भी मैं इससे सहमत हूँ। आपने अपने पत्र में जो तर्क दिए हैं वे खोखले तर्क हैं क्योंकि बात किन्हीं दो-चार शब्दों की नहीं हो रही है, बात
उस प्रवृत्ति की हो रही है जो आजकल चल रही है और जिस पर चलकर ही हिन्दी का आगे विकास होने जा रहा है। आप अगर 'अण्डा' बोल लेते हैं, इसका मतलब यह नहीं की सारा भारत उसे 'अण्डा' कहता है। भारत में तो लोग उसे 'अंडा' ही कहते हैं। क्या आप डण्डा, पण्डा, भण्डा,रण्डी, चण्डी, अरण्डी, खण्ड, प्रचण्ड ही बोलते हैं और ऎसे ही इन्हें लिखते हैं? वास्तव में ये ही सही शब्द हैं । क्या आप रम्भा, खम्भा,चम्बल, कम्बल, सम्बल ही लिखते हैं?
गुंजन,भंजन, अंजन, मंजन, निरंजन ही क्यों लिखना चाहते हैं आप? इन शब्दों को भी ञ लगा कर लिखिए।
मैं बात प्रवॄत्ति की कर रहा हूँ कि न कि सिर्फ़ दो-चार शब्दों की। और इस बहस को यहीं विराम दे रहा हूँ। इसका कारण यह है कि मेरे पास बहुत सीमित समय होता है जो मैं कविता कोश और गद्य कोश को देना चाहता हूँ। आप अपना ई. मेल पता लिखें या मुझ से मेरे ई.मेल पते पर सम्पर्क करें, मैं आपको इस सम्बन्ध में बहुत-सी सामग्री भेज दूंगा। मेरा पता है: aniljanvijay@gmail.com
आशा है, आप परिस्थिति को समझेंगे और नाराज़ नहीं होंगे। मैं, सुमित जी, मास्को रेडियो में अनुवाद का काम करता हूँ, मास्को विश्वविद्यालय में हिन्दी साहित्य पढ़ाता हूँ । सप्ताह में १८ घंटे। पढ़ाने के लिए ख़ुद भी बहुत पढ़ना पड़ता है। बी.ए.-एम.ए. के छात्रों को आप चरका नहीं दे सकते हैं। वे सभी आप ही की तरह बहुत होनहार और शार्प होते हैं। इसके अलावा मैं दो-दो व्यवसाय भी करता हूँ और मास्को में कई संस्थाओं का सदस्य भी हूँ। मास्को में अकेला ऎसा व्यक्ति हूँ जो हिन्दीभाषी है और ठीक-ठाक हिन्दी जानता है। इस कारण से रूस के हिन्दी विद्वान भी मुझ से सलाह-मश्विरा करने में मेरा बहुत समय खा लेते हैं। मैं कविताएँ और लेख आदि भी लिखता हूँ, इसलिए उसके लिए भी समय चाहिए। केवल अपनी व्यस्तताओं के कारण ही मैं आपसे बेकार की बहस नहीं करना चाहता हूँ। बस इतना ही कहना है। शुभकामनाओं सहित
सादर
 
पुनश्च : हमने यह तय किया है कि अनुस्वार ठीक करने का काम धीरे-धीरे ही करना है। एकसाथ एक ही सप्ताह में या एक ही झोंक में यह काम करने का समय कविता-कोश टीम में से किसी के पास नहीं है। हाँ, अगर यह काम आप पूरी तरह से अपने ज़िम्मे लेना चाहें तो टीम के सभी सदस्य आपके प्रति आभारी रहेंगे।
सादर
 
'''--[[सदस्य:अनिल जनविजय|अनिल जनविजय]] मास्को समय १८:१५, २८ अप्रैल २००८ (UTC)''''
 
==मजाज़==
प्रिय सुमित जी,
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