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| रचनाकार=सतीश शुक्ला 'रक़ीब'
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लोकप्रिय साहित्य को जब हम समर्पित हो गये
काव्यमय अभिव्यक्ति से तन-मन प्रफुल्लित हो गये

मोह-माया तज के अर्जुन ने उठाया जब धनुष
श्लोक गीता के सभी तब सारगर्भित हो गये

पीठ पीछे की प्रशंसा, सामने आलोचना
गुण मेरा अवगुण समझ, परिचित, अपरिचित हो गये

बाँट लें संपत्ति बेटों ने कहा, बापू की अब
अस्थियाँ और पुष्प गंगा में विसर्जित हो गये

क्या पता ? काँधे पे रखकर, किनके बन्दूकें चलीं
जिनके बल-बूते पे कितने लोग चर्चित हो गये

जो गये थे गाँव से लौटे नहीं हैं आज तक
कौन जाने? हैं अभी या काल कवलित हो गये

देख कैसे पायेंगे उन दीन-दुखियों को 'रक़ीब'
चक्षु, सुनकर ही व्यथा जब अश्रुपूरित हो गये
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