भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

थांरौ सांच / संजय आचार्य वरुण

660 bytes added, 17:10, 25 फ़रवरी 2015
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=राजू सारसर ‘राज’संजय आचार्य वरुण
|अनुवादक=
|संग्रह=म्हारै पांती रा सुपना मुट्ठी भर उजियाळौ / राजू सारसर ‘राज’संजय आचार्य वरुण
}}
{{KKCatKavita}}
{{KKCatRajasthaniRachna}}
<poem>
थारी हरेक ने
नापण री कोसिस
घटावै है कद
थारौ खुद रौ
 
थारी ऊँचाई पर
जावण री
बिना सींग पूंछ री इच्छा
थनै लाय पटकै
ठेठ रसातळ में।
 
थारी ज्ञान बघारण री
अणमांवती बायड़
थनै दरसावै
परलै दरजै रौ मूरख।
 
थारी ‘साबू’ बणन री चाल
पड़ै हमेस ऊँधी
अर तू रैय जावै
फगत एक बिलांद।
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
8,152
edits