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{{KKAnooditRachna
|रचनाकार=येहूदा आमिखाई
|संग्रह=धरती जानती है / येहूदा यहूदी आमिखाई
}}
[[Category:यहूदी भाषा]]
{{KKCatKavita}}  <Poem>
'''छवि'''
हम कल्पना नहीं कर सकते
 कि कैसे हम जियेंगे जिएँगे एक दूसरे के बिना  
ऐसा हमने कहा
 
और तब से हम रहते हैं इसी एक छवि के भीतर
 
दिन-ब-दिन
 एक दूसरे से दूर , उस मकान से दूर  
जहाँ हमने वो शब्द कहे
 
अब जैसे बेहोशी की दवा के असर में होता है
 
दरवाज़ों का बंद होना और खिड़कियों का खुलना
 
कोई दर्द नहीं
वह तो आता है बाद में......
वह तो आता है बाद में ......'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : शिरीष कुमार मौर्य'''</poem>
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