भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जयशंकर प्रसाद |अनुवादक= |संग्रह=क...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=जयशंकर प्रसाद
|अनुवादक=
|संग्रह=कानन-कुसुम / जयशंकर प्रसाद
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
नव-नील पयोधर नभ में काले छाये
भर-भरकर शीतल जल मतवाले धाये
लहराती ललिता लता सुबाल लजीली
लहि संग तरून के सुन्दर बनी सजीली
फूलो से दोनों भरी डालियाँ हिलतीं
दोनों पर बैठी खग की जोड़ी मिलती
बुलबुल कोयल हैं मिलकर शोर मचाते
बरसाती नाले उछल-उछल बल खाते
वह हरी लजाओ की सुन्दर अमरई
बन बैठी है सुकुमारी-सी छावि छाई
हर ओर अनूठा दृष्य दिखाई देता
सब मोती ही-से बना दिखाई देता
वह सघन कुंज सुख-पुंज भ्रमर की आली
कुछ और दृष्य है सुषमा नई निराली
बैठी है वसन मलीन पहिन इक बाला
पुरइन-पत्रों के बीच कमल की माला
उस मलिन वसन में अंग-प्रभा दमकीली
ज्यों घूसर नभ में चन्द्र-कला चमकीली
पर हाय ! चन्द्र को घन ने कयों है घेरा
उज्जवल प्रकाश के पास अजीब अँधेरा
उस रस-सरवर में क्यों चिन्ता की लहरी
चंचल चलती है भाव-भरी है गहरी
कल-कमल कोष पर अहो ! पड़ा क्यों पाला
कैसी हाला ने किया उसे मतवाला
किस धीवर ने यह जाल निराला डाला
सीपी से निकली है मोती की माला
उत्ताल तरंग पयोनिधि में खिलती है
पतली मृणालवाली नलिनी हिलती है
नहीं वेग-सहित नलिनी को पवन हिलाओ
प्यारे मधुकर से उसको नेक मिलाओ
नव चंद अमंद प्रकाष लहे मतवाली
खिलती है उसको करने दो मनवाली
</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=जयशंकर प्रसाद
|अनुवादक=
|संग्रह=कानन-कुसुम / जयशंकर प्रसाद
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
नव-नील पयोधर नभ में काले छाये
भर-भरकर शीतल जल मतवाले धाये
लहराती ललिता लता सुबाल लजीली
लहि संग तरून के सुन्दर बनी सजीली
फूलो से दोनों भरी डालियाँ हिलतीं
दोनों पर बैठी खग की जोड़ी मिलती
बुलबुल कोयल हैं मिलकर शोर मचाते
बरसाती नाले उछल-उछल बल खाते
वह हरी लजाओ की सुन्दर अमरई
बन बैठी है सुकुमारी-सी छावि छाई
हर ओर अनूठा दृष्य दिखाई देता
सब मोती ही-से बना दिखाई देता
वह सघन कुंज सुख-पुंज भ्रमर की आली
कुछ और दृष्य है सुषमा नई निराली
बैठी है वसन मलीन पहिन इक बाला
पुरइन-पत्रों के बीच कमल की माला
उस मलिन वसन में अंग-प्रभा दमकीली
ज्यों घूसर नभ में चन्द्र-कला चमकीली
पर हाय ! चन्द्र को घन ने कयों है घेरा
उज्जवल प्रकाश के पास अजीब अँधेरा
उस रस-सरवर में क्यों चिन्ता की लहरी
चंचल चलती है भाव-भरी है गहरी
कल-कमल कोष पर अहो ! पड़ा क्यों पाला
कैसी हाला ने किया उसे मतवाला
किस धीवर ने यह जाल निराला डाला
सीपी से निकली है मोती की माला
उत्ताल तरंग पयोनिधि में खिलती है
पतली मृणालवाली नलिनी हिलती है
नहीं वेग-सहित नलिनी को पवन हिलाओ
प्यारे मधुकर से उसको नेक मिलाओ
नव चंद अमंद प्रकाष लहे मतवाली
खिलती है उसको करने दो मनवाली
</poem>